वर्ण व्यवस्था
जाति पांति मे बांट दिया, इन्सान बना अछूत से।
मानव को सम्मान नहीं,
पवित्र पशु का मूत रे॥
पहनने को कपडे नहीं मिलते, पानी नहीं तालाब से।
भूख प्यास से मरते हैं, ये कैसा हिन्द का हाल रे॥
मान नहीं सम्मान नहीं, वहां
कैसे जिंदगी जीते।
पाखंडों में फंसकर के, पशु
की गन्दगी पीते॥
मनुवादी से घिरे रहे,
जिन्दगी बडी (बनी) बेहाल रे।
जीने का अधिकर नहीं, कैसा
किया हाल रे॥
क्यों जीते हो ऐसी जिन्दगी, एन. एन. तुम्हें समझावे।
अपनाले अब बुध्द शरण, राह
सही बतलावे॥
जाति पांति के भेद भाव से, छुटकारा मिल जावे रे।
अंधविश्वास में बने रहे, अब आके ज्योति जलाले रे॥
मेरी लेखनी गल्त लागे, माफ
करे कसूर रे।
मानव को सम्मान नहीं,
पवित्र पशु का मूत रे॥
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