Wednesday, February 19, 2020

यशोधरा वियोग से by नीतेश अजनबी

वन निकले सजन, मेरा सूना अंगन, महल छोड़ (चले) गए क्यों हमारे सजना|
मुझे लगी लगन, मेरा सूना पलंग, न आये मिलने को हमारे सजना||
जब याद सजन की आये, मेरा अंग- अंग दहलाये|
ना खबर पिया की आये, मिलाने को जिया घबराये||1||
भटके वन-वन, करें कठिन तपन, मोह माया को तजि गए हमारे सजना|
सुख (दुःख) खोजन चले गए हमारे सजना|

जब हमको बताके जाते, हम हसके तुम्हे  भिजवाते|
हम साथ आपके जाते, ना तुमको कभी सताते ||2||
नाहीं करते (में) तंग, चलते (में) संग-संग, वन में रहते तुम्हारे ही संग सजना |

माता-पिता को छोड़ा, समाज (राहुल)  से भी नाता तोडा|
छंदक को साथ में (संग लेके) लेकर, वैराग्य से रिश्ता(नाता) जोड़ा||
न जाते वन, न चलती कलम, न एन. एस. लिखता सच्ची रचना|
कलमकार " नीतेश शाक्य अनजबी"

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